बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 8
गृहों के प्रकार
(Types of Homes)
मनुष्य की तीन मौलिक आवश्यकताओं में से गृह एक है। गृह या आश्रय मनुष्य के भोजन तथा वस्त्र के पश्चात् तीसरी अनिवार्य आवश्यकता है। सर्दी, गर्मी, धूप, वर्षा, हिमपात आदि से बचाव और जंगली हिंसक पशुओं, लुटेरों आदि से सुरक्षा के साथ ही प्रतिदिन शरीर को विश्राम देने के लिए निश्चित आश्रय की आवश्यकता होती है। विविध प्रकार के कार्यों को करने के लिए, वस्तुओं के संग्रह तथा पालतू पशुओं के लिए भी गृह की आवश्यकता पड़ती है। आदिम अवस्था में मनुष्य गुफाओं तथा वृक्षों की कोटरों में शरण लेता था क्योंकि उसे गृह निर्माण कला का ज्ञान ही नहीं था। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ जब मनुष्य खेती करने लगा तब उसे स्थायी निवास बनाकर रहने की आवश्यकता का अनुभव हुआ और वह झोपड़ी बनाकर रहने लगा। बाद में मिट्टी, ईंट, पत्थर, लकड़ी तथा अन्य सामग्रियों का प्रयोग गृह निर्माण में होने लगा।
गृह या घर से अभिप्राय केवल निवास के लिए बनाये गये गृह से ही नहीं है बल्कि उन समस्त प्रकार के गृहों या भवनों से है जिनका प्रयोग विभिन्न प्रकार के आर्थिक- सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक क्रियाओं के सम्पादन हेतु किया जाता है। ब्रायन अनुसार, "गृह उन समस्त मानवीय रचनाओं को व्यक्त करता है जिनका प्रयोग रहने के लिए, कार्य करने के लिए अथवा वस्तुओं के संग्रह के लिए किया जाता है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि निवास गृह, कार्यालय, विद्यालय, कार्यशाला, दुकानें, देवालय (मंदिर, मस्जिद, चर्च ) आदि सभी गृह के ही विविध रूप हैं। गृहों के भौगोलिक अध्ययन में गृह निर्माण के उद्देश्यों, गृह निर्माण सामग्री, गृह योजना, गृहों के आकार एवं आकृति तथा गृहों के वर्गीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
गृह, भोजन तथा वस्त्र के बाद मनुष्य की तीसरी आवश्यकता है। मनुष्य की तीन मौलिक आवश्यकताओं में गृह एक है।
प्राचीन काल में मनुष्य गुफाओं तथा वृक्षो की कोटरो में शरण लेता था।
मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य झोपड़ी बनाकर रहने लगा।
धार्मिक कार्यों के लिए मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारा आदि धार्मिक स्थलों का निर्माण किया जाता है।
निर्माण के लिए समतल तथा सुप्रवाहित भूमि उपयुक्त होती है।
भूमिगत जल का स्तर भूसतह के निकट होना गृह के लिए हानिकारक होता है।
जिन भागों में चिकनी मिट्टी पायी जाती है वहाँ मिट्टी की दीवालें बनायी जाती है।
पर्वतीय प्रदेशों तथा उनके निकटवर्ती भागों में पत्थर के मकान अधिक बनाये जाते हैं।
संसार के कुछ प्रदेशों में विशेषकर लोयस प्रदेश (चीन) में भूमि के अन्दर शैलों को काटकर गुफाओं के रूप में गृह बनाये जाते हैं।
गृहों के स्वरूप को प्रभावित करने वाले कारकों में जलवायु सर्वाधिक प्रभावकारी है।
तापमान का प्रभाव, गृहों की दिशा, ऊंचाई, दीवालों की मोटाई आदि पर होता है।
ऊष्ण कटिबन्धीय देशों में गृहों का मुख्य द्वार अधिकतर पूरब तथा उत्तर दिशा में रखी जाती है।
पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में घर का मुख्य द्वार बनाना अनुपयुक्त तथा वर्जित माना जाता है।
शीतोष्ण कटिबन्धीय देशों में गृहों के द्वार प्रायः सूर्योन्मुखी बनाये जाते हैं।
आल्पस पर्वत के ढालों पर स्थित गृहों के द्वार प्रायः दक्षिण दिशा में बनाये जाते हैं।
शीतोष्ण प्रदेशों में लघु आकार के गृह उपयुक्त होते हैं।
यूरोप के शीतोष्ण प्रदेशों में गृहों की दीवालों की मोटाई पर तापमान का स्पष्ट प्रभाव पाया जाता हैं।
वर्षा का प्रभाव गृह निर्माण सामग्री तथा गृहों की छतों पर अधिक दिखाई पड़ता है।
कम वर्षा वाले तथा शुष्क प्रदेशों में गृहों की छतें प्रायः सपाट बनायी जाती हैं तथा दीवालें कच्ची ईंट या मिट्टी की होती हैं।
अरब से लेकर पंजाब तक सपाट छतों वाले मिट्टी के मकान बनाये जाते हैं।
वर्षा की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ छतों के ढाल बढते जाते हैं।
अधिक वर्षा वाले भागों में तीव्र ढाल वाले छप्परों का प्रचलन बहुतायत से पाया जाता है।
पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश में मिट्टी की दीवालों पर अधिक ढाल वाले छप्पर बनाये जाते हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में खपरैल का अनुपात छप्परों से अधिक हो जाता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिट्टी से निर्मित सपाट छत वाले गृह बहुतायत से बनाये जाते हैं
प्रचलित हवाओं का प्रभाव भी ग्रहों की स्थिति एवं योजना पर पाया जाता है।
ग्रामीण गृह अधिकांशतः स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री से बनाये जाते हैं।
पर्वतीय प्रदेशों तथा उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में पत्थर के मकान बनाये जाते हैं।
मैदानी प्रदेशों में मिट्टी की दीवालों वाले मकानों की संख्या अधिक पायी जाती है।
वन प्रदेशों तथा उनके समीपवर्ती भागों में गृह निर्माण में लकड़ियों तथा पत्रों आदि का प्रयोग किया जाता है।
पक्के गृहों के निर्माण में पक्की ईट, पत्थर, कंकरीट, सीमेन्ट, लोहा बालू आदि आधुनिक ' सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है।
व्यक्ति के आर्थिक दशा का प्रभाव उसके गृहों पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। -
साधन सम्पन्न तथा घनी व्यक्तियों के मकान बड़े आकार-प्रकार के तथा कीमती सामग्रियों से बनाये जाते हैं।
ग्रामीण गृहों को देखकर ही उसमें रहने वाले परिवार की आर्थिक दशा का पता लगाया जा सकता है।
अनेक सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों का प्रभाव गृहों की संरचना तथा स्वरूप में देखा जा सकता है।
गृहों की स्थापत्य कला पर धार्मिक विश्वासों, सामाजिक परम्पराओं तथा मान्यताओं का विशेष प्रभाव पाया जाता है।
विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित देवालयों के स्वरूपों में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है।
विभिन्न धर्मावलम्बी परिवार अपने गृह की दीवालों, दरवाजों तथा मुख्य द्वारों आदि पर अपने धर्म से संबंधित इष्ट देवों की मूर्तियां या विशिष्ट चिह्न भी बनाते हैं।
हिन्दुओं के गृह-द्वारों पर विष्णु, गणेश, शिव, दुर्गा आदि के चित्र देखे जा सकते हैं। ईसाईयों के द्वार पर रेडक्रास के चिह्न पाये जाते हैं।
सरकारी नीति का प्रत्यक्ष प्रभाव भी गृहों के स्वरूपों पर दिखाई पड़ता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी मापदण्डों का प्रभाव व्यक्तिगत गृहों पर कम पाया जाता है किन्तु आवास योजनाओं के अंतर्गत सरकारी सहायता से निर्मित आवास बनाये जाते हैं।
भारत में इन्दिरा आवास योजना, अम्बेडकर ग्राम योजना आदि के तहत् मकान एक निर्धारित मापदण्ड के अनुसार बनाये जाते हैं।
नगरों में स्थानीय नगरपालिका द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार ही भवन (गृह) बनाये जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गृह सामान्यतः स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों से बनाये जाते हैं।
गृह निर्माण में सामान्यतः मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, घास, ईंट, बालू आदि का प्रयोग किया जाता है।
मिट्टी गृह निर्माण की सस्ती तथ सर्वसुलभ सामग्री है जिसका प्रयोग विश्व व्यापक है।
चिकनी मिट्टी गृह निर्माण के लिए सर्वाधिक उपयुक्तं होती है।
मिट्टी के खपड़े बनाये जाते हैं जो छतों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं।
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- अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 पुराणों के विशेष सन्दर्भ में भौगोलिक समझ का विकास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 मानव वातावरण सम्बन्ध
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- अध्याय - 4 जनसंख्या
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- अध्याय - 5 मानव अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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- अध्याय - 6 ग्रामीण अधिवास
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- अध्याय - 7 नगरीय अधिवास
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- अध्याय - 8 गृहों के प्रकार
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- अध्याय - 9 आदिम गतिविधियाँ
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- अध्याय - 10 सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
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- अध्याय - 11 प्रजाति
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- अध्याय - 12 धर्म एवं भाषा
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- अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
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- अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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